कहानी संग्रह >> प्रेम प्रसून ( कहानी-संग्रह ) प्रेम प्रसून ( कहानी-संग्रह )प्रेमचन्द
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इन कहानियों में आदर्श को यथार्थ से मिलाने की चेष्टा की गई है
मैं वर्षों ऐसे स्थानों में रहा हूँ, जहाँ निर्जनता के सिवा कोई दूसरा साथी न था, वर्षों ऐसे स्थानों में रहा हूँ, जहाँ की पृथ्वी और आकाश हिम की शिलाएँ थीं, मैं भयंकर जन्तुओं के पहलू में सोया हूँ, पक्षियों के घोसलों में रातें काटी हैं, किंतु ये सारी बाधाएं कट गईं, और वह समय अब दूर नहीं कि साहित्य और विज्ञान संसार मेरे चरणों पर शीश नवाए।
मैंने इस यात्रा में बड़े-बड़े अद्भुत् दृश्य देखे, कितनी ही जातियों के आहार-व्यवहार रहन-सहन का अवलोकन किया। मेरा यात्रा-वृत्तांत विचार, अनुभवों और निरीक्षण का अमूल्य रत्न होगा। मैंने ऐसी-ऐसी आश्चर्यजनक घटनाएँ आँखों से देखी हैं, जो अलिफलैला की कथाओं से कम मनोरंजक न होंगी। परन्तु वह घटना, जो मैंने ज्ञानसरोवर के तट पर देखी, उसकी मिसाल मुश्किल से मिलेगी। मैं उसे कभी न भूलूँगा। यदि मेरे इस तमाम परिश्रम का उपहार यही एक रहस्य होता तो भी मैं उसे काफी समझता। मैं यह बता देना आवश्क समझता हूँ कि मैं मिथ्यावादी नहीं, और न सिद्धियों तथा विभूतियों पर मेरा विश्वास है। यदि कोई दूसरा प्राणी यही घटना मुझसे बयान करता, तो मुझे उस पर विश्वास करने में बहुत संकोच होता। किन्तु मैं जो कुछ बयानकर रहा हूँ, वह सत्य घटना है। यदि मेरे आश्वासन पर भी कोई उस पर अविश्वास करे तो यह उसकी मानसिक दुर्बलता और विचारों की संकीर्णता है।
यात्रा का सातवाँ वर्ष था और ज्येष्ठ का महीना। मैं हिमालय के दामन में ज्ञानसरोवर के तट पर, हरी-हरी घास पर लेटा हुआ था। ऋतु अत्यंत सुहावनी थी–ज्ञानसरोवर के स्वच्छ निर्मल जल में आकाश और पर्वत-श्रेणी का प्रति बिम्ब, जल-पक्षियों का पानी पर तैरना, शुभ्र हिम-श्रेणी का सूर्य के प्रकाश से चमकना आदि दृश्य ऐसे मनोहर थे कि मैं आत्मोल्लास से विह्ल हो गया। मैंने स्विटजरलैंड और अमेरिका के बहुप्रशंसित दृश्य देखे हैं, पर उनमें यह शांतिप्रद शोभा कहाँ! मानव-बुद्धि ने उनके प्राकृतिक सौंदर्य को अपनी कृतिमता से कलंकित कर दिया है।
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